भूपेश सरकार ने कार्यभार संभाल लिया था कवासी लखमा बस्तर
क्षेत्र से विधायक है , छत्तीसगढ़ मिनिरल डेवलपमेंट
कॉरपोरेशन उन्ही के पास हे , वह इन तमाम परिस्थितियों को अच्छे से जानते भी हैं, की बैलाडीला के इस मामले को कैसे डील किया
जाए लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद से भूपेश सरकार पूर्व कि रमन सरकार और केंद्र सरकार पर अधिक आक्रमणकारी हो गई
है. इसी सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण मामला बस्तर का सरकार के सामने आया और उस
तेरा नंबर ब्लॉक को बचाने के लिए सिलसिलेवार आदिवासियों को यह संदेश दिया गया की
अचानक तीन दिनों में हजारों की संख्या में आदिवासी बैलाडीला किरणदुल की ओर रवाना हो गए पहले तो लगा कि
यह आंदोलन स्फूर्ति है पर धीरे-धीरे इसकी कलई खोलने लगी जब विभिन्न राजनीतिक दलों
ने अपने अपने हिसाब से इस आंदोलन को हवा देना शुरू किया मामला चूँकि धर्म और आस्था से जुड़ा दिया गया है. इसलिए कोई भी नेता या सरकार इस मामले को लेकर बड़े ही
सधे शब्दों
में बयान बाजी कर रही है, आंदोलनरत आदिवासियों का कहना है कि 3 दिन से हम धरने पर बैठे हैं. सरकार और न ही एनएमडीसी का जिम्मेदार अधिकारी ने हमसे बातचीत
भी नहीं की है, ना ही हमें राज्य सरकार ने
कोई आश्वासन दिया है इसलिए हम यहां तब
तक बैठे रहेंगे जब तक हमारे देवी देवताओं की इस पहाड़ी को संरक्षित सुरक्षित किया जाएगा
छत्तीसगढ़ के खनिजों पर अदानी की पहले से नजर थी | बड़ा ही दिलचस्प बात है. की पूरे देश
के सरकारी उपक्रमों को छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में जो खदानें आवंटित हुई है, चाहे वह लोहे की हो या कोयले की हो या लाइमस्टोन की हो उन सब का खनन और विकसित करने
का काम पीछे के दरवाजे से मोदी सरकार ने
अदानी को दे रखा है, इस तरह घोषित अघोषित तरीके से उन खदानों में
अदानी का कब्जा है, उदाहरण के तौर
पर छत्तीसगढ़ शासन को आवंटित चाहे वह
बिजली विभाग की कोयले की खदाने हों या छत्तीसगढ़
मिनिरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की जो भी खदानें सरकार ने केंद्र सरकार ने आवंटित की थी, उनको पीछे के दरवाजे से अदानी को सौंप दिया गया है. इस खेल के पीछे यह मंशा है
की अदानी को लोहा,कोयला ,लाइमस्टोन की माइंस छत्तीसगढ़ क्या पूरे देश में
कहीं भी चाहिए है, तो उसे नियमानुसार ऑनलाइन टेंडर में पार्टिसिपेट करना पड़ेगा
जिसे वह नहीं करना चाहता वंही बाकी उद्योग
घरानों ने खनिजों के लिए ऑनलाइन टेंडर भरकर खदानें प्राप्त की है लेकिन सिर्फ और
सिर्फ यही एक उधयोगघराना है जिसने पूरे देश में कहीं भी ऑनलाइन टेंडर
लेकर खदान हासिल नहीं की है, अदानी ने हर जगह उन सरकारी उपक्रमों के साथ एमओयू करके अपनी शर्तों पर पूरे देश के कोल भंडारों का काफी बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में
कर लिया है. इसी तरह छत्तीसगढ़ मिनिरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की लोहा खदान किरणदुल को भी अदानी ने इसी पद्धति से अपने कब्जे में
लिया है. यही नियत की खोट है जिसके कारण इतने अच्छे डिपॉजिट को लेकर
आंदोलन चल रहा है, एनएमडीसी से उस डिपॉजिट को छत्तीसगढ़ शासन के अधिपत्य दिलाने में शुरू से केंद्र सरकार, रमन सरकार और अडानी एक साथ काम कर रहे थे, यह जग जाहिर है उस
वक्त भी इस खदान के आवंटित होने के कागजात पब्लिक डोमेन में आ गए
थे, जिसके कारण दोनों सरकारों की काफी किरकिरी
हुई थी ,पर फिर भी मोदी तो मोदी है. उन्होंने अदानी
को वादा किया होगा. और रमन सरकार पर दबाव बनाकर एक सोची-समझी रणनीति के तहत जिसे
कहते हैं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे की तर्ज पर बैलाडीला का तेरा नंबर
ब्लॉक जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण आयरन ओर है दुनिया
में सर्वश्रेष्ठ है उसको नवरत्न कंपनी से छीन कर अदानी को देने की प्रक्रिया की गई
यह है| राजनीतिक फायदे का यही खेल है .अदानी ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में राजिस्थान बिजली बोर्ड की कोयले
की खदान हो या रायगढ़ में
एसईसीएल की खदान हो के साथ भी एम ओ यू कर के कोयला अपने हक़ में किया हुआ है, जानकार
सूत्रों का कहना है की पीछे के दरवाजे से अदानी ने छत्तीसगढ़ के मिनरल पर 70% से अधिक का कब्जा कर लिया है
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