मैं खामोश बस्तर हूँ,लेकिन आज बोल रहा हूँ।
अपना एक-एक जख्म खोल रहा हूँ।
मैं उड़ीसा,आंध्र,महाराष्ट्र की सीमा से टकराता हूँ।
लेकिन कभी नहीं घबराता हूँ
दरिन्दे सीमा पार करके मेरी छाती में आते हैं।
लेकिन महुआ नहीं लहू पीकर जाते हैं।
मैं अपनी खूबसूरत वादियों को टटोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ।
गुंडाधूर को आजादी के लिए मैने ही जन्म दिया था।
इंद्रावती का पानी तो भगवान राम ने पीया था।
भोले आदिवासी तो भाला और धनुष बाण
चलाना जानते थे।
विदेशी हथियार तो उनकी समझ में भी नहीं आते थे।
ये विकास ......
मेरी छाती पे लैंड माईन्स बीछ गयी।
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन बोल रहा हूँ
मेरी संताने एक कपड़े से तन ढकती थी।
हंसती थी,गाती थी,मुस्कुराती थी।
बस्तर दशहरा में रावण नहीं मरता है।
मुझे तो पता ही नहीं था
रावण मेरे चप्पे चप्पे में पलता है।
भाई साहब अब तो मेरी संताने भी
मुखौटे लगाने लगी हैं।
लेकिन ये नहीं जानती हैं कि
बहेलियों ने जाल फ़ेंका है।
मैने कल मां दंतेश्वरी को भी
रोते हुए देखा है।
मैं लाशों के टुकड़ों को जोड़ रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ भाई साहब
लेकिन आज बोल रहा हूँ..
नक्सलवाद मेरी आत्मा का एक छाला था
फ़िर धीरे-धीर नासूर हुआ,
और इतना बढा-इतना बढा कि
बढकर इतना क्रूर हुआ
चित्रकूट कराह रहा है,कुटुमसर चुप है
बारसूर में अंधेरा घुप्प है,क्योंकि हर पेड़ के पीछे एक बंदुक है।
और बंदुक नहीं है तो उन्होने कोई रक्खी है।
अरे उन्होने तो अंगुलियों को भी
पिस्तौल की शक्ल में मोड़ रखी है।
सन 1703 में मैथिल पंडित भगवान मिश्र ने जिस दंतेश्वरी का यशगान लिखा, उसका शब्द शब्द मौन है।
अरे कांगेरघाटी,दंतेवाड़ा,
बीजापूर,ओरछा,सूकमा कोंटा में
छुपे हुए लोग कौन हैं?
मेरी संताने क्यों उनके झांसे में आती हैं।
ये इतनी बात इनकी समझ में क्युं नहीं आती है।
सड़क और बिजली काट देने से तरक्की कभी गांव में नहीं आती है।
मैं अपने पुत्रों की आंखे खोल रहा हूँ,
*मैं खामोश बस्तर हूं, लेकिन आज बोल रहा हूँ।
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