हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है
रायपुर/// आज गणेश चतुर्थी का आज गणेश चतुर्थी का
महत्वपूर्ण दिन है इस दिन पूरे देश
में घर घर छोटी बड़ी गणेश प्रतिमाओं को विधि विधान से स्थापित किया जाता है यथा
शक्ति श्रद्धा के साथ उनका नमन किया जाता है सार्वजनिक रूप से गणेश प्रतिमाओं
का विराजमान होना महाराष्ट्र से शुरू हुआ
बाल गंगाधर तिलक ने इस महत्वपूर्ण हिंदुओं के त्यौहार को सार्वजनिक रूप से
मनाने की शुरुआत की थी आज गणेश उत्सव के
नाम से यह त्यौहार पूरे भारत में गणेश की मूर्तियों को विराजमान कर मनाया जाता है
छत्तीसगढ़ भी इस त्यौहार से अछूता नहीं है
छत्तीसगढ़ में गणेश की आदम कद प्राचीन मूर्तियां आज भी देखी जा सकती है इसी
सिलसिले में दंतेवाड़ा जिले में बारसूर के गणेश
मैंकल पर्वत श्रृंखला के दंतेवाड़ा
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर आदम कद मूर्ति
के रूप में विराजमान हैं करीब 15
सो साल पूर्व की प्रतिमा आज भी
स्थापित है जानकारों का कहना है कि इस
प्रतिमा को 11 वीं शताब्दी के राजा द्वारा
बनवाई गई थी और दंतेवाड़ा इसी बारसूर
पहाड़ की चोटी पर स्थापित किया गया था आज
भी दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए काफी संख्या में
पर्यटक इस मूर्ति के दर्शन के लिए जाते हैं नक्सल प्रभावित क्षेत्र के होने
के बावजूद इस मूर्ति के प्रभाव से उस क्षेत्र में जाने वाले किसी भी पर्यटक को
किसी भी तरीके का कोई नुकसान नहीं हुआ है रास्ता बहुत ही दुर्गम में पहुंचने में 6
से 7 घंटे लगते हैं लेकिन पहुंचने के बाद इस अद्भुत मूर्ति को देखकर सारी थकान दूर
हो जाती है फिर पर्यटक वापस आ जाते हैं
बारसूर के बारे में
कहा जाता है कि बरसो चारों युगों के स्वर्णिम अतीत का मुख साक्षी है वर्तमान
छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण में दंतेवाड़ा जिले में स्थित बारसूर नगरी प्राचीन काल
से धर्म आस्था और पर्यटन का केंद्र बना हुआ है वर्तमान में माओवादी समस्या के
बढ़ने के बाद भी धर्म और प्राकृतिक प्रेमियों का बार सुराणा कम नहीं हुआ है
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त पहलाद के पुत्र विरोचन से
राजा बलि हुए राजा बलि से विष्णु भगवान ने दान स्वरूप धरती मांग लिया था उस राजा
बलि का पुत्र बाण बाढ़ ने अपनी राजधानी दंडकारण्य वर्तमान में जो स्थित बारसूर को
बनाया मानस पुत्र था फतेह बारसूर का नाम बाणासुर पड़ा बानसूर परम शिव भक्त शिव
भगवान को अपने तपोबल से प्रसन्न कर बाणासुर ने उनसे अक्षय ध्वज प्राप्त किया
विष्णु भगवान का भाड़ा सुर को वरदान था कि जब तक उसके राज में अक्षय ध्वज लहराता
रहेगा कोई भी बाणासुर को प्रजा ने पराजित नहीं कर सकेगा भगवान शिव का वरदान
प्राप्त बाणासुर निर्भीक होकर राज करता रहा अपने आराध्य शिव का उसने 32 खंभों पर
स्थित अति बत्तीसा मंदिर का भी निर्माण किया था इस बत्तीसा मंदिर पर अक्षय 2 साल
से लहरा रहा है और सूरज शिव शिव परिवार का परम भक्त था बानसूर सहित आसपास के
अंचलों में शिव गणेश शक्ति रूपा दुर्गा माता के अनगिनत मंदिर बनवाए आज भी बारसूर
और आसपास के ग्रामों में शिव मंदिर के मूर्तियां पाई जाती हैं प्राचीन कथा के
अनुसार एक बार बाणासुर की पुत्री श्री कृष्ण के नाती अनुरोध पर मोहित हो गई और
अपनी सखी चित्रलेखा के सहयोग से सोते हुए अनुरोध को मायावी शक्ति का प्रयोग कर
बारसूर ले आई तदुपरांत भगवान कृष्ण के चरण दंडकारण्य में स्थित बानसूर पर पड़े और
विष्णु के अवतार श्री कृष्ण बाणासुर के मध्य भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध में बरसों
की पराजय को साथी अक्षय नष्ट हो गया और भगवान शंकर की कृपा से यह जानने में सफल
रहा कि कृष्ण भगवान विष्णु अवतार हैं बानसूर के पहाड़ियों में सबसे ऊंची पहाड़ी पर
भगवान गणेश की इस प्रतिमा को किसने स्थापित किया यह अभी तक स्पष्ट जानकारी नहीं है
फिर भी लोग यह कहते हैं कि इस प्रतिमा को 15 वर्ष पहले स्थापित किया गया है
बहुत प्राचीन समय की बात है कि एक बार नैमिषारण्य में कथाकार सूतजी पधारे।
उन्हें आया देखकर वहां रहने वाले ऋषि मुनियों ने उनका अभिवादन किया। अभिवादन के
बाद सभी ऋषि- मुनि अपने-अपने आसन पर बैठ गए तब उन्हीं में से किसी एक ने सूतजी से
कहा-‘‘हे सूत जी ! आप लोक और लोकोत्तर के ज्ञान-ध्यान से परिपूर्ण कथा वाचन में
सिद्धहस्त हैं। हमारा आप से निवेदन है कि आप हमें हमारा मंगल करने वाली कथाएँ
सुनायें।’’ ऋषि-मुनियों से आदर पाकर सूतजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा-‘‘आपने
जो मुझे आदर दिया है वह सराहनीय है। मैं यहां आप लोगों को परम कल्याणकारी कथा
सुनाऊंगा।’’ सूतजी ने कहा-‘‘बह्मा, विष्णु, महेश, ब्रह्म के तीन रूप हैं। मैं स्वयं उनकी शरण
में रहता हूं। यद्यपि विष्णु संसार पालक हैं और वह ब्रह्मा की उत्पन्न की गयी
सृष्टि का पालन करते हैं। ब्रह्मा ने ही सुर-असुर, प्रजापति
तथा अन्य यौनिज और अयौनिज सृष्टि की रचना की है। रुद्र अपने सम्पूर्ण कल्याणकारी
कृत्य से सृष्टि के परिवर्तन का आधार प्रस्तुत करते हैं। पहले तो मैं तुम्हें
बताऊंगा कि किस प्रकार प्रजाओं की सृष्टि हुई और फिर उनमें सर्वश्रेष्ठ देव भगवान
गणेश का आविर्भाव कैसे हुआ। भगवान ब्रह्मा ने जब सबसे पहले सृष्टि की रचना की तो
उनकी प्रजा नियमानुसार पथ में प्रवृत्ति नहीं हुई। वह सब अलिप्त रह गए। इस कारण
ब्रह्मा ने सबसे पहले तामसी सृष्टि की, फिर राजसी। फिर भी
इच्छित फल प्राप्त नहीं हुआ। जब रजोगुण ने तमोगुण को ढक लिया तो उससे एक मिथुन की
उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा के चरण से अधर्म और शोक से इन्सान ने जन्म लिया। ब्रह्मा ने
उस मलिन देह को दो भागों में विभक्त कर दिया। एक पुरुष और एक स्त्री। स्त्री का नाम
शतरूपा हुआ। उसने स्वयंभू मनु का पति के रूप में वरण किया और उसके साथ रमण करने
लगी। रमण करने के कारण ही उसका नाम रति हुआ। फिर ब्रह्मा ने विराट का सृजन किया।
तब विराट से वैराज मनु की उत्पत्ति हुई। फिर वैराज मनु और सतरूपा से प्रियव्रत और
उत्तानुपात दो पुत्र उत्पन्न हुए और आपूति तथा प्रसूति नाम की दो पुत्रियां हुईं।
इन्हीं दो पुत्रियों से सारी प्रजा उत्पन्न हुई। मनु ने प्रसूति को दक्ष के हाथ
में सौंप दिया। जो प्राण है, वह दक्ष है और जो संकल्प है,
वह मनु है। मनु ने रुचि प्रजापति को आपूति नाम की कन्या भेंट की।
फिर इनसे यज्ञ और दक्षिणा नाम की सन्तान हुई। दक्षिणा से बारह पुत्र हुए, जिन्हें याम कहा गया। इनमें श्रद्धा, लक्ष्मी आदि
मुख्य हैं। इनसे फिर यह विश्व आगे विकास को प्राप्त हुआ। अधर्म को हिंसा के गर्भ
से निर्कति उत्पन्न हुई और अन्निद्ध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। फिर इसके बाद यह
वंश क्रम बढ़ता गया। कुछ समय बाद नीलरोहित, निरुप, प्रजाओं की उत्पत्ति हुई और उन्हें रुद्र नाम से प्रतिष्ठित किया गया।
रुद्र ने पहले ही बता दिया था कि यह सब शतरुद्र
नाम
से विख्यात होंगे। यह सुनकर ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और फिर इसके बाद उन्होंने पृथ्वी
पर मैथुनी सृष्टि का प्रारम्भ करके शेष प्रजा की सृष्टि बन्द कर दी। सूतजी की
बातें सुनकर ऋषि-मुनियों ने कहा, ‘‘आपने हमें जो बताया है
उससे हमें बड़ी प्रसन्नता हुई है। आप कृपा करके हमें हमारे पूजनीय देव के विषय में
बताइये। जो देवता हमें पूज्य हो और उसकी कृपा से हमारे और आगे आने वाली प्रजाओं के
कल्याणकारी कार्य सम्पन्न हों।’’ ऋषियों की बात सुनकर सूतजी ने कहा कि ऐसा देव तो
केवल एक ही है और वह है महादेव और पार्वती के पुत्र श्री गणेश।किसी भी पूजा-अर्चना
या शुभ कार्य को सम्पन्न कराने से पूर्व गणेश जी की आराधना की जाती है। यह गणेश
पुराण अति पूजनीय है। इसके पठन-पाठन से सब कार्य सफल हो जाते हैं।
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