कर्नाटका , की हार और पश्चिम बंगाल की हार मैं समानता है सब कुछ ठीक ठाक होने के बावजूद भाजपा को दोनों प्रदेशों में वोटरों ने स्वीकार नहीं किया , उसका मुख्य कारण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,ने मोदी जिस तरह दीदी ओ दीदी को लेकर कैंपेन में एक नैरेटिव सेट किया था जिसे जनता ने बुरी तरीके से उसे नकार दिया पिछली बार पश्चिम बंगाल में बीजेपी के पक्ष में इतना अच्छा माहौल था कि ममता को सत्ता में आने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता , हो सकता वह सत्ता से बाहर भी हो जाती , इसी तरह नरेंद्र मोदी सुपरस्टार केम्पनर ने लगातार कर्नाटक में डेरा डाला जो उचित नहीं था उन्हें अपनी पुरानी सरकार के कृत्य अच्छे से पता थे उन मुद्दों को लेकर यदि वह जनता से संवाद करते तो बेहतर परिणाम होते हैं लेकिन उन्होंने यह नहीं किया हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के चक्कर में नरेंद्र मोदी ने चुनाव के बीच में बजरंगबली और बजरंग दल को एक साथ जोड़ दिया नफरत की राजनीति कर्नाटक में तो कांग्रेस ने शुरू की थी आपको इसका कोई जवाब नहीं देना था PFI तो पहले से बेन था बजरंग दल को बेन करना असं नहीं था लेकिन मोदी जी ने सोचा कि बजरंग दल और बजरंगबली को जोड़ देने से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर लेगें वह नहीं हुआ उन्हें होना भी नहीं था क्योंकि वास्तविकता में दोनों अलग-अलग हैं उनको जबरन जोड़कर भाजपा ने अपनी फजीहत कराई भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी कर्नाटक में थी वह सार्वजनिक रूप से 40% की सरकार का जो तमगा वर्तमान सरकार को मिला था वह दाग धुल नहीं रहा था उसको भूलने की कोशिश भाजपा ने राजीव गांधी के उस बयान से करना चाही जो बहुत ही पुराना और घिसा पिटा साबुन था उससे भाजपा का नया 40% का दाग नहीं धुल पाया भाजपा को करना यह चाहिए था कि हमने 40% कमीशन खाने वाले तमाम लोगों को चुनाव मैदान से बाहर कर दिया है यही सबसे बड़ी सजा है उनकी अब जो लोग बचे हैं उन्हें भी बता दिया गया है कि यदि जनता का काम नहीं किया तो हम उन्हें भी हटा देंगे हम जनता के सेवक हैं और जनता की सेवा करेंगे ऐसा ना कर उल्टे कांग्रेस को घेरने के चक्कर में खुद ही घर गए
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