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केदारनाथ मंदिर के कपाट खुले दर्शन यात्रा शुरू

Anil Choubey 13-05-2019 15:58:07



देहरादून. केदारनाथ मंदिर के कपाट गुरुवार को खुल गए। कपाट खुलने के पहले ही सैकड़ों तीर्थयात्री वहां मौजूद थे। मई को गंगोत्री और यमनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है। यह छह महीने चलेगी। आज 10 मई को बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे। इन मंदिरों के कपाट हर साल अक्टूबर-नवंबर में महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैंजो अप्रैल-मई में फिर खुलते हैं। इस बार भारी हिमपात से यात्रा मार्ग पर काफी बर्फ है।

उत्तराखंड के चारधाम और उनका महत्व

उत्तराखंड में हर साल गर्मियों में चारधाम यात्रा होती है। इन चारों स्थलों (गंगोत्रीयमनोत्रीकेदारनाथ और बद्रीनाथ) को  पवित्र माना जाता है। गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं। वहीं बद्री विशाल (भगवान विष्णु) का पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम चमोली और भगवान शिव का पवित्र धाम केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। 


स्कंद पुराण के अनुसारगढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर बनवाया गया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल 1750-500 ईसा पूर्व भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसारयहां भी 8वीं सदी के बाद आदि शंकराचार्य ने मंदिर बनवाया।

संक्षिप्त इतहास

बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मन्दिर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह हिंदू देवता विष्णु को समर्पित मंदिर है और यह स्थान इस धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानोंचार धामोंमें से एक है। यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण ७वीं-९वीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं। मन्दिर के नाम पर ही इसके इर्द-गिर्द बसे नगर को भी बद्रीनाथ ही कहा जाता है। भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान हिमालय पर्वतमाला के ऊँचे शिखरों के मध्यगढ़वाल क्षेत्र मेंसमुद्र तल से ३,१३३ मीटर (१०,२७९ फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित है। जाड़ों की ऋतु में हिमालयी क्षेत्र की रूक्ष मौसमी दशाओं के कारण मन्दिर वर्ष के छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) की सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है। यह भारत के कुछ सबसे व्यस्त तीर्थस्थानों में से एक है२०१२ में यहाँ लगभग १०.६ लाख तीर्थयात्रियों का आगमन दर्ज किया गया था।

बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप "बद्रीनारायण" की पूजा होती है। यहाँ उनकी १ मीटर (३.३ फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है। यद्यपियह मन्दिर उत्तर भारत में स्थित है, "रावल" कहे जाने वाले यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य के नम्बूदरी सम्प्रदाय के ब्राह्मण होते हैं। बद्रीनाथ मन्दिर को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार अधिनियम – ३०/१९४८ में मन्दिर अधिनियम – १६/१९३९ के तहत शामिल किया गया थाजिसे बाद में "श्री बद्रीनाथ तथा श्री केदारनाथ मन्दिर अधिनियमके नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकारद्वारा नामित एक सत्रह सदस्यीय समिति दोनोंबद्रीनाथ एवं केदारनाथ मन्दिरोंको प्रशासित करती है।

विष्णु पुराणमहाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी से पहले आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी इसकी महिमा का वर्णन है। बद्रीनाथ नगरजहाँ ये मन्दिर स्थित हैहिन्दुओं के पवित्र चार धामों के अतिरिक्त छोटे चार धामों में भी गिना जाता है और यह विष्णु को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से भी एक है। एक अन्य संकल्पना अनुसार इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्रीभविष्य-बद्री,वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है।

ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। मन्दिर तक आवागमन सुलभ करने के लिए वर्तमान में चार धाम महामार्ग तथा चार धाम रेलवे जैसी कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है।


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